यह पुस्तक इस्रायल के स्फूरर्तिदायक इतिहास को तो उजागर करती ही है; साथ ही, इस्रायल की धार्मिक परंपराएँ, समाजजीवन, दकियानुसी चौख़ट के बाहर की सोच रखते हुए कल्पना से परे होनेवालीं बातें साध्य करनेवाला इस्रायल का अभिनव दृष्टिकोण, इस्रायल का सेनाबल, अर्थकारण, आन्तर्राष्ट्रीय संबंध, सबसे अहम बात, इन सब बातों का इस्तेमाल करके, आत्यंतिक प्रतिकूल हालातों में भी इस्रायल ने की हुई दर्शनीय प्रगति इन सबसे भी पाठक को परिचित कराती है। ज्यूधर्मियों के आद्यपूर्वज अब्राहम और ‘होली लँड’ के संदर्भ में उन्हें हुआ ईश्वर का साक्षात्कार, इस ज्यूधर्म में मान्यता प्राप्त कथा से इस पुस्तक की शुरुआत होती है। उसके पश्चात् के सारे कालखंड के ज्यूधर्मियों के इतिहास पर नज़र डालते हुए ‘झायोनिझम्’ के उदय के कालखंड तक यह पुस्तक आ पहुँचती है; और उसके बाद इस्रायल की स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के बाद भी इस्रायल को लड़ने पड़े अहम युद्ध और इस्रायल ने हासिल की प्रगति इनपर रोशनी डालती है।
इस पुस्तक का महत्त्व अधोरेखांकित करने के लिए, डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी ने लिखी, इस पुस्तक की प्रस्तावना का यह एक परिच्छेद उचित साबित होगा – “भविष्य में पूरी दुनिया भर में जो युद्ध का, वैमनस्य का एवं मानवनिर्मित प्राकृतिक आपदाओं का दावानल भड़कनेवाला है और जो धीरे धीरे पूरी दुनिया को घेर सकता है, ऐसी सारी बातों का मुक़ाबला करने का सामर्थ्य, यदि इस्रायल तथा भारत दृढ़तापूर्वक एकत्रित रहें, तो यक़ीनन ही निर्माण हो सकता है; और इन दो देशों के साथ यदि जापान, अमरीका और रशिया अपने हाथ मिलायें, तो इस होनेवाले विध्वंस को का़फी हद तक टाला जा सकता है।